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क्या सी. मुं• मुं० बाँधते थे ? व्यतीत संवत्सर के जेष्ठ मुदी पञ्चमी सं० १९६१ को जो शास्त्रार्थ मध्य में छोड़ा गया जिसका यह प्राशयथा कि ढूंढियों की ओर से सदा मुख बन्धन की विधि का कोई प्रमाण मिले सो आज दिन तक कोई उत्तर उन की तरफ से प्रगट नहीं हुआ, अतः उन की मुकता आप के शास्त्रार्थ के विजय की सूचिता है। बस इस विषय में हमारी संमति है और हम व्यवस्था याने फैसला देते हैं कि आप का पक्ष उन की अपेक्षा बलवान् है, आप की विद्या की स्फूर्ति और शुद्ध धर्माचार की नेष्टा अतीव श्रेष्टतर है । प्रायः करके जैन शास्त्र विहित प्रतीत होता है और है। इत्यलम् १८ पौह सं० १९६२ मु० रियासत नाभा ।
। पण्डित भैरवदत्त.
| २ पण्डित श्रीधर राज्य पण्डित नाभा. हस्तातर ३ ३ पण्डित दुर्गादत्त, पंडितों के । ४ पण्डित वासुदेव.
। ५ पण्डित बनमालिदत्त ज्योतिषी. उक्त फैसले के पाने पर श्रीमुनि वल्लभविजयजी ने श्रीमान नाभा नरेश को एक पत्र लिखा, उस की नकल भागे देते हैं।
श्रीमान् महाराजा साहिब नाभापतिजी जयवन्ते रहें, और राय-फोट से साधु वनभविजय की तरफ से धर्मलाभवांचना ।
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