SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक प्रमाण । ४०६ बावीसवीं शताब्दी तक ज्यों के त्यों चले आये परन्तु डोरा डाल दिनभर मुँहपत्ती मुँहपर बाँधने का न तो किसी ने दुराग्रह किया और न इस बात का साहित्य के अन्दर खण्डन- मण्डन का किसी ने एक शब्द तक भी उच्चारण किया है। इससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि भगवान् महावीर के बाद इकवीस सौ वर्ष तक तो किसी ने डोरा डाल दिनभर मुँहपत्ती मुँहपर नहीं बाँधो थी पर बावीसवीं शताब्दी के अन्त में स्वामि लवजी ने डोराडाल दिनभर मुहपत्ती मुंह पर बाँधने की कुप्रवृति चलाई और उसी समय से इस विषय का खण्डन- मण्डन प्रारम्भ हुआ । यदि कोई भाई अपनी अल्पज्ञता के कारण यह सवाल करे कि जो भगवान् महावीर के पश्चात् बावीस शताब्दियों के अन्दर के चाचायों के नाम दिये गये हैं वे सब के सब मूर्तिपूजक और हाथों में पती रखने वालों के हैं पर इस समय के बीच कहीं मुंहपत्ती मुंह पर बान्धने वाले आचार्य भी हुए होंगे ? अव्वल तो ऐसे कहने वालों को अपने श्राचार्य होने का एकाध प्रमाण देना चाहिये जैसे कि हमने पूर्वोक्त बावोस शतादियों में हुए आचायों के अस्तित्व के फुट नोट में प्रमाण दिये हैं। दूसरा इन बावीस शताब्दियों की प्रचलित क्रिया में थोड़ा भी रद्दोबदल हुआ कि उनकी चर्चा उसी समय प्रारम्भ होना हम ऊपर बतलाये हैं तो मुहपत्ती के विषय में यदि पहिले डोरा - बाल मुँहपती मुँह पर बाँधी जाती हो और बाद में किसी ने डोरा फेंक कर मुंहपत्ती हाथ में रखनी शुरू कर दी हो तो उसका समय व श्रादि पुरुष बतलाना चाहिये और जिस समय डोरा तोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy