SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०७ हाथ में मुंहपत्ती रक्खी हो उस समय इसका खंडन-मंडन भी : अवश्य हुआ हो, ऐसा उल्लेख बतलाना चाहिये । क्या ती मुँ० मु० बाँधते थे ? " यदि यह कहा जाय कि डोरा डाल मुंहपती मुंहपर बाँधने वाले थोड़ी संख्या में थे तब बहुत संख्या वाले जो हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले अपनी प्रवृति की पुष्टि और आपसे खिलाफ वालों का खंडन-मंडन किया होगा पर यह तो कभी भी नहीं हो सकता कि इतना बड़ा जबर्दस्त परिवर्तन हो और उभय पक्ष शान्ति धारण कर एक शब्द तक उच्चारण न करे । वास्तव में भगवान् श्रादीश्वर से भगवान् महावीर और आपके पश्चात् बावीसवीं शताब्दी तक किसी जैन ने डोराडाल दिन भर मुंहपत्ती मुंह पर नहीं बाँधी थी । यह कुप्रथा स्वामि लवजी द्वारा (वि० सं० १७०८ से ) ही शुरू हुई है । जब स्वमत के शास्त्रों, परमत के शास्त्रों और ऐतिहासिक साधनों से यह स्पष्ट सिद्ध है कि डोराडाल दिनभर मुंहपत्ती मुँह पर बाँधना प्राचीन नहीं पर अर्वाचीन अर्थात् वि० की अट्ठारहवीं शताब्दी में प्रचलित हुई है तब भगवान ऋषभदेव, बाहुबली, ब्राह्मी, सुन्दरी, प्रश्नचन्दराजर्षि, केशीश्रमण, भगवान् महावीर और अरएक कामदेव श्रावकों के डोरा वाली मुंहपत्ती बँधाने के कल्पित चित्र बनवा कर उन महापुरुषों को अन्य धर्मियों से निंदा करवाने का काम सिवाय मूर्खता के क्या हो सकता है? इस बात को हमारे स्थानकमार्गी भाई फिर खूब सोचें, समझें और मनन करें । यदि उन कल्पित चित्रों को अजमेर के स्था० साधुसम्मेलन के बीच रक्खे जाने तो ज्ञात होता कि स्थानकमार्गी समाज, विशेषतया स्थानकवासी साधु इन चित्रों से सहमत हैं या इनका एक दम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy