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________________ ४०५ क्या ती. मुं. मुं.बाँधते थे ! कुशल, जयसोमसूरि, कल्याणसागरसूरि८, सिद्धसूरि, उ० समय सुन्दर९, परमयोगि आनन्दघनजी१०, महोपाध्याय यशोविजयजी११, पन्यास सत्यविजयगणि१२ आदि ये सबमूर्तिपूजक और हाथ में मुँइपत्ती रखने वाले थे। इस शताब्दी में भी मूर्ति पूजा का खण्डन-मण्डन जोर से था परन्तु मुँहपत्ती की चर्चा बिल्कुल नहीं थी। कारण अखिल जैन श्वेताम्बर समाज मुंहपत्ती हाथ में रखने वाला ही था परन्तु इस शताब्दी के अन्त में स्वामि लवजी ने डोराडाल दिनभर मुंहपर मुँहपत्ती बाँधने की नयी प्रथा चलाई उसके बाद इस विषय की चर्चा शुरू हुई है। पाठको ! आप इस उपरोक्त भगवान महावीर प्रभु के पश्चात् क्रमशः बावीस शताब्दियों और इन शताब्दियों में धुरंधर विद्वानाचार्यों की नामावली से स्वतः समझ गये होंगे कि इन शताब्दियों में साधुओं को वस्त्र रखना यो न रखना, भगवान महावीर के पांच या छः कल्याणक मानना, स्त्रियों को प्रभु पूजा करना या नहीं करना, सामायिक के समय श्रावकों को मुँहपत्ती चरवला रखना या नहीं रखना, मूर्तिपूजा मानना या नहीं मानने के मतभेद जिस-जिस समय और जिस-जिस पुरुष के द्वारा उत्पन्न हुए वे .. ७-भक्तामर स्तोत्र की टीका कर्ता। ८-वर्धमानशाह जामनगर वाले के बनाये मन्दिर को प्रतिष्ठा कर• खाने वाले । ९-प्रसिद्ध कवि तथा अष्टलक्षी के कर्ता। -१०-प्रसिद्ध अध्यात्म-योगी अनेक स्तवन पदों के रचयिता। "-परम गीतार्थ और ११० प्रन्थों के निर्माता । १२-क्रिया उद्धारक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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