________________
ऐतिहासिक प्रमाण ।
भगवान् महावीर की इकवीसवीं शताब्दी. आचार्य हेमविमलसूरि१, आनन्दविमलसूरि२, उपाध्याय विद्यासागर३, विजयदानसरि, जयकेशरीसूरि, कक्कसूरि, देवगुप्तमुरि इत्यादि ये सब आचार्य मूर्तिपूजक और हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले हीथे। इस शताब्दी में मूर्तिपूजा के विषय में खण्डन-मण्डन चालू था पर मुंहपत्ती तो क्या मूर्तिपूजक और क्या मूर्तिपूजक सब लोग हाथ में हो रखते थे। इस शताब्दी तक मुँहपत्ती विषय की किसी ने भी चर्चा नहीं की थी। भगवान् महावीर की बावीसवीं शताब्दी___ आचार्य विजयहीरसूरि४, विजयसेनसूरि५, उदयसिंह, फनक
-आपके चरणों में लौं कामत के ३७ साधओं ने जैन दीक्षा ग्रहण की थी।
२-आप क्रिया उद्धारक हुए और आपके पास कुल ७८ लौकामत के साधुओं ने पुनः दीक्षा ली थी।
३-आपने जैसलमेर, मारवाड़ और मेवाड़ में बहुत श्रावक जो तपागच्छ के थे और वे अन्य मत के उपासक बन गये थे, उनको पुनःः तपागच्छ में स्थिर किये।
४-प्रसिद्ध यवन सम्राट अकबर को प्रतिबोध कर तीर्थों के रक्षण निमित्त फरमान या एक वर्ष में छ:मास जीव दया के परवाने और लौंकामत के पूज्य मेघजी आदि अनेक साधुओं ( शाह वाड़ीलाल मोतीलाल लिखित ऐतिहासिक नोंध पृष्ट १० अनुसार ५०० साधुओं) को पुन: मूर्तिपूजक बनाके जैन दीक्षा दी। भाप बड़े ही प्रभाविक आचार्य हुए।
५-बादशाह अकबर के पास रह कर हमेशा उपदेश देने वाले। ६-श्राद्ध प्रतिक्रमण भाष्य के कर्ता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org