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क्या सी० मुँ. मुं० बान्धते थे!
भगवान महावीर की उन्नीसवीं शताब्दी
प्रभाचन्द्रसूरि १ मलिसेनसूरि २ मेरुतुजसूरि ३ सोमतिलकमूरि ४ सिद्धसरि ५ आदि प्राचार्य मूर्ति उपासक और हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले ही थे। भगवान महावीर की बीसवीं शताब्दी___ आचार्य सोमसुन्दरसूरि६, मुनिसुन्दरसरित, रत्नशेखरसरिट, मानसागरसरि९ सिद्धसूरि आदि प्राचार्य मूर्तिपूजक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले ही थे। इस शताब्दी में लोकाशाह हुआ
और मूर्तिपूजा के विरोध में पुकार उठाई और इसी शताब्दी में मूर्तिपूजा विषयक खण्डन-मण्डन प्रारम्भ हुआ इसके पूर्व मूर्तिपूजा के विषय में किसी प्रकार की चर्चा या खण्डन-मण्डन जैन साहित्य में नहीं मिलती है। आचार्य ज्ञानसागरसूरि ( यति ज्ञानजी ) हुए जो लौकामाह के गुरू थे।
१-आपने प्रभाविक चरित्र नामक ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की। २-आप बड़े ही प्रभाविक और अनेक ग्रन्थों के कर्या हुए। ३--प्रबन्ध चिन्तामणि और विचार श्रेणी के कर्ता।
४--जिन प्रभसूरि ने पद्मावती देवी के वचन से जाना कि इस समय भरतक्षेत्र में तपागच्छ का अभ्युदय होगा। इस कारणसे अपने बनाये हुए आगम स्तवादि स्तोत्र आचार्य सोमतिलकसूरि को अर्पण किये । __ ५--श्री शत्रुजय तीर्थ के पन्द्रहवें उतारक समरसिंह के धर्मगुरू और आप ही के कर कमलों से इस महान् तीर्थ की पुनः प्रतिष्ठा हुई।
६-प्रसिद्ध राणकपुर के त्रिलोक्यदीपक मन्दिर की प्रतिष्ठा कारक । ७--अध्यात्म कल्पद्रुम ग्रन्थ के कर्मा। , --श्राद्ध विधि भादि अनेक ग्रन्थों के निर्माता ।
९--ौंकायाह के गुरू।
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