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________________ ऐतिहासिक प्रमाण । भगवान महावीर की अठारहवीं शताब्दी आचार्य जयसिंहसूरि १, हेमचन्द्रसूरि २, जगच्चन्द्रसूरि ३, वादी देवसूरि४, जीवदेवसूरि५ कक्कसूरि६, जिनपत्तिसूरि७, अभयदेवसूरिट, भुवनचन्द्रसूरि ९, विजयचन्द्रसूरि १० आदि ये सब आचार्य मूर्तिपूजा प्रचारक और हाथ में मुँहपत्ती रखनेवाले ही थे B आपने १- आप पाटण के नरेश सिद्धराज जयसिंह के परम माननीय थे । बहुत अजैनों को जैन बनाये और पक्षीसूत्र के वृत्तिकर्ता भी थे। २- भाप कलीकाल सर्वज्ञ विरुदधारक साढ़े तीन करोड़ श्लोकों के रचयिता और महाराज कुमारपाल के गुरू थे । ३ – आपकी कठोर तपश्चर्या से मुग्ध बन चितौड़ के महाराणा ने तपा विरुद दिया जिससे वडगच्छ का नाम तपागच्छ हुआ । ४ - आपने ८४ वादियों को पराजय कर वाद विरुद हसिल किया। स्याद्वाद रत्नाकर जैसे न्याय के ग्रन्थ रचयिता और फलौदी तीर्थ के पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा के कर्त्ता थे । ૪૨ ५- आप बड़े ही योगी और विद्यालब्धि सम्पन्न थे । एक समय ब्राह्मणों ने धर्मान्धता के कारण एक मृत गाय को सूरिजी के उपाश्रय में डलवादी तब सूरिजी ने परकाय प्रवेश विद्या बल से उसी गाय को शिवालय में ढालदी। इस चमत्कार को देख ब्राह्मण सूरिजी के पक्के भक्त बन गये । Jain Education International ६ -- आप उस समय राजगुरु के नाम से प्रख्यात थे आचार्य हेमचन्द्रसूरि और महाराज कुमारपाल आपको बहुमान पूर्वक वन्दन करते थे । ७ - आपने संघ पटुक पर विस्तारवाली टीका रची। 3- यह मल्लधारी अभयदेवसूरि महान् प्रभाविक हुए 1 ९ -- मंत्री आसपाल और वस्तुपाल तेजपाल के गुरू थे 1 १० - वृद्ध पोसालिया शाखा के आदि पुरुष थे आपकी परम्परा में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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