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________________ क्या ती. मुं. मुं० बाँधते थे भगवान् महावीर की दशवीं शताब्दी___ धनेश्वरसूरि४, यक्षदेवसूरि, कालकाचार्य, देवर्द्धिगणि क्षमण और यक्षदेवाचार्य८ ये सब श्राचार्य मूर्ति उपासक और हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले ही थे । इस शताब्दी में पञ्चमी की संवत्सरी चतुर्थी को करने का उल्लेख ग्रन्थों में मिलता है क्योंकि यह नयी प्रवृति हुई थी पर मूर्ति या मुंहपत्ती को कहीं भी चर्चा नहीं इसका कारण एक ही है कि मूर्ति और मुँहपत्ती विषय सब श्वेताम्बर जैनों की एक ही मान्यता थी। भगवान् महावीर पश्चात् ग्यारहवीं शताब्दी आचार्य हरिभद्रसूरी१, जिनभद्रगणि, क्षमाश्रमण२, देला - ४-श्री शत्रुजय महात्म्य नामक ग्रन्थ की रचना आप श्री ने ही की थी। ६-आपने राजा ध्रुवसेन के कारण पञ्चमी के स्थान में चतुर्थी को संवत्सरी की वह आज पर्यन्त चालु ही है। ७-आपने वीरात् ९४० वर्ष वल्लभी नगरी में आगमों को पुस्तका रूढ किया। -आपके पास देवर्द्धिगणिजी ने एक पूर्व सार्थ और आधा पूर्व मूल का अभ्यास किया था। १-प्रसिद्ध १४४४ प्रन्थों के का। इनके समय के लिए नई बोध वाले कुछ भागे बढ़े हैं। २-यह प्रसिद्ध भाष्यकार हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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