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ऐतिहासिक प्रमाण।
३९६ आदि आचार्य मूर्तिपूजक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले हो थे। इस शताब्दी में साधुओं को वस्त्र नहीं रखने की एकान्त खेंच करने वाला दिगम्बर मत का प्रादुर्भाव हुआ और वह चर्चा उसी समय से प्रारंभ हो गई परन्तु मूर्ति या मुँहपत्ती के बारे में चर्चा तक भी किसी ने न की इससे स्पष्ट है कि मूर्तिपूजा करना और मुंहपत्ती हाथ में रखने में अखिल शासन एक मत था । भगवान् महावीर की आठवीं शताब्दी-- ___ आचार्य देवानन्दसूरि, सर्वदेवसूरि१, सिद्धमूरि२, मलवादी सूरि, वीरसूरि, यक्षदेवसूरि ये सब आचार्य वीर आज्ञाधारी हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले ही थे। भगवान् महावीर की नववीं शताब्दी--
विक्रमसूरि, नरसिंहसूरि, समुद्रसुरि, नन्नप्रभसूरि३, रत्नप्रभसूरि ये सब आचार्य हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले ही थे । इस शताब्दी में कई साधु चैत्यवासी भी थे उनकी चर्चा इस समय के ग्रन्थों में विद्यमान है परन्तु मूर्ति या मुंहपत्ती की चर्चा इस समय खोजने पर भी नहीं मिलती है, कारण उस समय अखिल जैन श्वेताम्बर समाज मूर्तिपूजक और हाथ में मुंहपत्ती रखने वाला ही था ।
-यह कोस्टगच्छाचार्य हैं और बोथरा संकलेचादि २१ जैन जातियों के संस्थापक हैं।
२-इन्होंने जैन धर्म की बड़ो भारी प्रभावना की। क्योंकि, आप लब्धि पात्र थे।
३-यह कोरंटगच्छ के आचार्य हैं और इन्होंने १०.०० ब्राह्मणों को जैन बनाये थे।
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