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________________ ३९५ क्या ती. मुं. मुं. बांधते थे ? सूरि४,आर्य खंदिल५, आर्य रक्षित६, आर्य जज्जगसूरि७ आदि सब प्राचार्य मूर्तिपूजक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले ही थे। भगवान् महावीर की सातवीं शताब्दी__ आचार्य चन्द्रसूरि८, सामंतभद्रसूरि९, वृद्धदेवसूरि १०, मानदेवसूरि११, मानतुंगसूरि१२, कक्कसूरि१३, गन्धहस्तीप्राचार्य १४ ४-बज्रपेन के ४ शिष्यों को ज्ञानाभ्यास करवा कर उनके चार कुल स्थापित किये । आज जितने गच्छ हैं वे सब चन्द्रकुल में हैं और इन सब पर आचार्य देवगुप्तसूरि का महान् उपकार है। . ५-आप श्री ने माधुरी वाचना कर जैन धर्म पर महान् उपकार किया है। ६-आपने जैनागमों के चारों अनुयोग अलग अलग कर साधारण बुद्धि वालों पर भी असीम उपकार किया है। -आपने सत्यपुर ( सांचौर ) में मंत्री नहाड के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा करा कर भव्य जीवों के कल्याण करने में मुख्य निमित्त बन गए। ८-आपके कारण कोटीगच्छ का नाम चन्द्रगच्छ हुआ। ९-आपके बनवास करने से चन्द्रगच्छ का नाम बनवासीगच्छ हुआ। १०-आप बड़े भारी प्रभाविक हुए, कई राजाओं पर आपका प्रभाव पड़ता था। ११-आपने नाडौल में रहकर लघुशांति स्तव बनाकर शाकम्भरी के संघ के उपद्रव की शान्ति करवाई। १२-आपने श्री भक्तामर स्तोत्र बना के जैन धर्म का प्रभाव डालकर एक राजा को जैनधर्मी बनाया। १३-मापने लाखों नये जैन श्रावक बनाकर शासन की प्रभावना की। १४-आपने सब से पहिले आगों पर टीकाओं की रचना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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