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________________ ऐतिहासिक प्रमाण | भगवान् महावीर की पाँचवी शताब्दी कालकाचार्य, इन्ददीनाचार्य, वृद्धवादीसरि९, सिद्धसूरि, सिद्धसेन, दिवाकर १०, पादलिप्तसूरि११ आदि ये सब सूरीश्वर मूर्ति उपासक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले थे । भगवान् महावीर की छठी शताब्दी आचार्य व स्वामि १, बज्र सेनसूरि २, विमलसूरि ३, देवगुप्त ३९४ नये जैन और हजारों जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवा कर धर्म को खूब प्रसारित किया । ८ - आप श्री ने श्री पद्मवणाजी सूत्र को संकलित किया । आपका अपर नाम श्यामाचार्य भी था । ९ - आपने महान् पंडित सिद्धसेन को शास्त्रार्थ में जीत अपना शिष्य बनाया | १० - आपने सम्राट् विक्रम को अपना भक्त बनाया तथा साहित्य के आप धुरंधर पंडित थे । आपने सम्म त तर्क जैसा न्याय का अपूर्व ग्रन्थ बनाया । ११ - आपकी स्मृति में आज पालीताना नगर विद्यमान है, निर्वाणकलिका ग्रन्थ भी आपका ही बनाया हुआ है । १ - यह प्रसिद्ध आचार्य हैं | दुष्काल में संघ का रक्षण और जिन मन्दिर के लिये पुष्प लाकर बौद्ध राजा को जैन बनाया । २ -यह भी प्रसिद्ध आचार्य हैं। दुष्काल में सुकाल की सूचना देकर चन्द्र, नागेन्द्र, निवृति और विद्याधर नाम के चार शिष्यों को दीक्षा दी । ३ – आपने १०००० श्लोक प्रमाण का 'पउमचरिय' नामक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ बनाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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