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क्या ती• मुं० मुं० बाँधते थे
... आगे इतिहास की सूक्ष्म शोध खोज करने पर भी हमें यह कहीं पर पता नहीं मिलता है कि विक्रम की अट्ठारहवीं शताब्दी पूर्व किसी जैनाचार्य ने डोराडाल मुँहपर मुँहपत्ती बाँधी हो ? यहाँ पर मैं मेरे पाठकों के अवलोकनार्थ भगवान महावीर के पश्चात प्रत्येक शताब्दी के जैनाचार्यों के थोड़े-थोड़े नामोल्लेख करने का प्रयत्न करूँगा जिससे निर्णयार्थी स्वयं विचार कर सकेगा कि कहाँ तक मुँहपत्ती हाथ में रखने की प्रवृत्ति थी जिसको अखिल श्वेताम्बर समाज मानता था और बाद में किस समय मुँहपत्ती मुंह पर बाँधने का रिवाज हुआ और इस रिवाज के बारे में जैन समाज का कैसा सख्त विरोध था और आज भी है जिन प्राचार्यों के यहाँ नामोल्लेख करूँगा उनके अस्तित्व के विषय में ऐतिहासिक प्रमाण नीचे फुटनोट में दे दिये जायंगे कि पाठकों को पढ़ने में और भी सुविधा रहे । भगवान महावीर के पश्चात् पहिली शताब्दी__ गणधर सौधर्माचार्य१, चरमकेवली जम्बु स्वामी, आचार्य स्वयंप्रभसूरि२ प्रभवाचार्य, आचार्य रत्नप्रभसूरि३, कनकप्रभ
१-द्वादशांगी के रचयिता तथा वीरात् २३ वें वर्ष में भद्रेश्वर स्थित मूर्ति की प्रतिष्ठा के कर्ता।
२-श्रीमाल नगर के राजा प्रजा ९०००० घरों को प्रतिबोध कर जैन बनाये और वहाँ भगवान ऋषभदेव के मन्दिर की प्रतिष्टा करवाई।
और पद्मावती नगरी में यज्ञ में बलिदान होते लाखों प्राणियों को अभयदान दिलाकर ४५००० अजैन कुटुम्बों को जैन बनाये और यहाँ शान्तिनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई ( उपकेशगल्छ पट्टावली)
३-इन्होंने उपकेशपुर में ३८४००० घरों को मांस मदिरा छुड़ाकर
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