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क्या ती० मुं० मुं० बाँधते थे (१०) आबू देलवाड़ा के सुप्रसिद्ध मन्दिर में जैनाचार्यों की ग्यारहवीं शताब्दी की मूर्तिएँ हैं पर मुँहपत्ती तो उनके भी हाथों में ही है।
(११) आचार्य जिनेश्वरमूरि, हेमचन्द्रमूरि,धर्मघापमूरि और जिनवल्लभमूरि के बहुतसे चित्र बारहवीं शताब्दी के मिले है उनके भी हाथों में मुहपत्ती है। .
(१२) वि० सं० ९३४ का लिखा हुआ एक कल्पसूत्र है जिसमें जैनाचार्यों के कई चित्र पर मुंहपत्ती सबके हाथों में ही हैं।
(१३) पाटण, खंभात, ईडरादि के प्राचीन ज्ञान भण्डारों से श्रीमान् सारा भाई नबाब ने बड़ा भारी भगीरथ प्रयत्न कर
जैन चित्रों का संग्रह कर 'जैनचित्र कल्पद्रुम' नामक पुस्तक प्रकाशित की हैं, जिसमें बहुत से मुनियों के प्राचीन मूर्तियों और कल्प सूत्रादि हस्त लिखित सूत्रों की प्रतियों से उसी आकृति के ब्लाक बना के चित्र दिये हैं उसमें से पंचमगणधर श्रीसौधर्म स्वामी
आचार्य काल कसूरि श्रादि नमूने के तौर पर ४ चित्र यहाँ भी दिये गये हैं जो आपके सामने विद्यमान हैं। ये चित्र भले ही उस समय के न हों और बाद में बनाये गये हों, पर मुँहपत्ती मुँह पर बाँधने वाले स्वामि लवजो से सैकड़ों वर्ष पूर्व के जरूर हैं और इन चित्रों से यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि जैनश्रमण सदैव सनातन से मुँहपत्तो हाथ में ही रखते थे, जिनको अधिक चित्र देखने हों उनको पूर्वोक्त नबाब भाई की पुस्तक को देखना चाहिये कि जिसमें भगवान् गौतम स्वामी प्राचार्य स्थुलभद्र जैसे प्राचीन महापुरुषों के भी कई चित्र दिये हुए हैं।
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