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________________ ३८७ क्या ती० मु० मु० बाँधते थे समय की अनेक तीर्थङ्करों की मूर्तिएँ मिलती हैं, यदि भगवान् यह प्रथा उस समय ऋषभदेव मुँह पर मुँहपत्ती बाँधते थे और से चली आती है तो ऋषभदेव की मूर्ति के मुँह पर पत्थर की मुँहपत्ती अवश्य होनी चाहिए। जैसे कि स्था० साधु हर्षचंदजी की पाषाणमय मूर्त्तिमारवाड़ के गीरी ग्राम में इस समय विद्यमान है। और उस मूर्त्ति के मुँह पर डोरावाली पाषाण पर मुँहपत्ती मूर्ति के साथ हो चित्री हुई है । यह साधु और इसकी यह मूर्ति इस बीसवीं शताब्दी को ही है । क्योंकि इस समय जिस समुदाय वाले मुँह पर मुँहपत्ती बाँधते हैं; यह प्रति कृति उसी समुदाय के एक साधु की है। जब तीर्थकरों की मूर्ति के मुँह पर मुँहपक्षी नहीं है तो इससे स्पष्टतया सिद्ध होता है कि किसी तीर्थङ्कर, गणधर, साधु या श्रावक ने लवजी के पहिले कभी मुँह पर मुँहपत्ती नहीं बाँधी थी, और अब जो मुँह पर मुँहपत्तीयुक्त तीर्थङ्करों के चित्र बनवाए गए हैं वे इस मुँह पर मुँहपत्ती धारक नवीन स्था० सम्प्रदाय के साधुओं की ही एक मानसिक कल्पना मात्र हैं । (४) यद्यपि स्थानकमार्गी अपने आपको लौकाशाह की संतान बताने का दम भरते हैं, परन्तु लौंकाशाह के सिद्धान्त भी इनको सर्वथा मान्य नहीं हैं। क्योंकि न तो लौंकाशाह ने कभी मुँह पर मुँहपत्ती बाँधी थी और न लौंकाशाह के अनुयायी श्राज पर्यन्त बाँधते हैं। इतना ही नहीं लेकिन वे तो उल्टा मुँहपक्षी बाँधने वालों का सख्त विरोध करते हैं । इस हालत में स्थानक - मार्गियों को या तो लौकाशाद का अनुयायी नहीं बनना चाहिये, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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