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________________ ऐतिहासिक प्रमाण। ३८८ या मुँहपत्ती में डोराडाल के मुँह पर बाँधना नहीं चाहिए, किन्तु उसे उनकी भाँति हाथ में ही रखना चाहिये। (५) उपकेशपुर (ओसियां) के मन्दिर के रङ्ग मण्डप में एक आचाय व्याख्यान दे रहे हैं, स्थापनाजी सामने हैं, हाथ में मुँहपत्ती है और कई श्रावक व्याख्यान सुन रहे हैं ऐसा पाषाण मय दृश्य है । श्रोसियाँ का यह मन्दिर प्रायः २४०० वर्षों का प्राचीन है और इस बात को डंके की चोट से बताता है कि उस समय जैन श्रमण मुंहपत्ती हाथ में ही रखते थे । देखो चित्र को (६) कण्ह (कृष्ण) श्रमण (साधु) की एक २००० वर्षों की प्राचीन मूर्ति मथुरा के कंकाली टीना के अन्दर से खोद काम करते अंग्रेजों को मिली है, जो अब सरकारी म्यूजियम में सुरक्षित है इसके भी हाथ में मुंहपत्ती है । देखो चित्र (७) कुंभारियाजी का मन्दिर बहुत प्राचीन है जिसके मण्डप की छत में एक प्राचार्य तथा साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाएं विशाल संख्या में जो पाषाण में खुदाई का काम कर बनाए गए हैं, वे अद्यावधि भी स्पष्ट दिखते हैं, पर इन सबके हाथों में ही मुखवत्रिका है । देखो चित्र (८)अजारी में वादी वेताल शान्तिसूरि की यारहवीं शताब्दी में बनी एक मूर्ति है जिसके हाथ में मुंहपत्ती है । -देखो चित्र (8) पाटण में आचार्य ककमरि की पाषाणमय मूत्तिएं है जिनके हाथों में मुहपत्तिएं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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