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________________ जैन शानों के प्रमाण ३७६ सामायिक या पाँच सात दिन की तपश्चर्या करने वाले साधुओं को दिन रात मुँह बान्ध कर असंख्य समूच्छिम जीवों की हिंसाका पाप शिर पर क्यों उठाना चाहिये । फिर आगे चल कर देखिये “जे भिखु । अचेल परिबुसिए तस्सणं भिखुस्स एवं भवति, चाएमि अहं तणफासंअहियासित्तोए सियंफासं अहियासिताए उसण्णफासं अहियासिताए एवं दंसमस्सका अहियासिताए एगंत्तरे अण्णेरे विरुवरुवेफांसं अहियासिताए हिरिपडि छादणंच अहं णो संचाएमि अहियसिताए एवं से कप्पइ कडिबंधणंधारित्ताए" आचारांगं सूत्र श्रु०१-८-. जो साधु अचल (वसरहित) रहने वाला है ऐसा वह विचार करे कि मैं तृण परिसह शीतोष्ण परिसह दंस मसग (मच्छरादि) श्रादि और और परिसह को तो सहन करलुंगा पर गुह्य प्रदेश (पुरुष चिन्ह ) रुपी लज्जारूप परिसह को सहन करने में असमर्थ हूँ ऐसे साध को एक कटि-बन्ध यानि एक हाथ का चोडा और कटि प्रमाण लम्बा वस्त्र, रखना कल्पता है । इस सुत्र पाठ में केवल एक कटिबंध वस्र साधु रख सकता है अब सोचिये आपके मुंहपत्ती का डोरा कहाँ रहा है क्या आप ऐसे साधुओं को साधु समझोगे या नहीं यदि जैनशास्त्रानुसार वे साधु हैं तो आप डोरा का हट करते हो वह बिलकुल मिथ्या ही ठेरेगा। समझा न भाई साहिब । कितनेक अज्ञ लोग मुँहपत्ती में डोरा के साथ साध्वियों के साडाके डोराकी तुलना करते हैं उन महानुभावों को सोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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