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क्या ० ती. मुँ० बाँधते थे ?
वज्जपि भासं भासति ? गोयना जाहेणं सकेदेविंदे देव राया मुहुम कार्य अणिजूहिताणं भासं भासति ताहेणं सकेदेविंदे देवराया सावज्जं भासं भासति - जाहेणं सके देविंदे देवराया सुहुमकायं निजूहिताणं भासं भासति ताणं सर्वदेविदे देवराया अणवज्जं भासं भासति से तेलट्ठे जाव भासति "
श्री भगवती सूत्र श० १६० २ गौतम स्वामि ने भगवान् से प्रश्न किया कि शकेन्द्र भाषा बोलता है वह सावधं है या निर्बंध ? हे गौतम शक्रेन्द्र मुंह आगे हाथ रख कर बोलता है वह निर्वद्य भाषा है और मुंह आगे हाथ दिया बिना बोलता है वह सावद्य भाषा हैं इस सूत्रार्थ में स्पष्ट लिखा है कि मुँह आगे हाथ रख बोले वह निर्वद्य भाषा है पर मुँह बन्धने की गंन्धतक भी सूत्र में नहीं है फिर भी हमारे स्थानकवासी भाई अभी सावद्य निर्वद्य के मतलब को नहीं समझते हैं वे तो अपने मताग्रह से केवल मुँहपर मुँहपत्ती । दिन भर बान्धने में ही सब कुछ समझ रक्खा है । भले विचारो कि किसी मनुष्यने मुँहपर हाथ कपड़ा या मुखवत्रिका बान्ध कर भी
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कहा कि इस जीव को मारडालो और किसीने खुल्ले मुंह कहा कि इस जीव को मत मारो अर्थात् बचाओ अब आपके हिसाब से आप सावध और निर्वद्य भाषा किसको कहोगे ? क्या मुँह बान्ध कर जीव मारने की भाषा को निर्वद्य कहोगे या खुल्ले मुँख जीव बचाने वाले की भाषाको निर्वद्य कहोगे ? यदि बोलते समय खुल्ने मुँह नहीं बोलना ही आपका इष्ट है तो मौन व्रत से
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