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क्या ती० मुं० मुं० बान्धते थे?
सज्जनों! जमाना सत्यवाद-प्रमाणवाद और इतिहासवाद, का है । इस समय प्रत्येक पदा की पड़ताल हो रही है । सूक्ष्म से सूक्ष्म बात की आज छानबीन हो रही है। प्रत्येक लेख, श्राकृति, अब इतिहास की कसौटी पर कसी जा रही है । अपनी अपनी मान्यता को सिद्ध करने को श्राज हरेक समुदाय ऐतिहासिक साधन संग्रह कर रहेहैं, पौर्वात्य और पाश्चात्य पुरातस्त्रहों की शोध खोज से अनेक मूर्तियों, चित्र, सिके, शिलालेख प्राचीन प्रन्थादि की सामग्री प्राप्त हुई है । और इन साधनों द्वारा आज प्राचीनता का निर्णय हो सकता है । :: क्या हमारे स्थानकमार्गी भाई भगवान ऋषभदेव से महावीर तक किसी तीर्थक्करों के मुँहपर मुंहपत्ती बांधने का एक भी ऐतिहासिक प्रमाण उपस्थित कर सकते हैं ? यदि नहीं तो फिर ये कल्पित चित्र किस आधार से बनाए गए हैं, और ऐसे कृत्रिम चित्रों को क्या कीमत हो सकती है ? तीर्थ करों के प्रादुर्भाव को तो बहुत समय बीत गया है, पर विक्रम की अठारहवीं शताब्दी अर्थात् स्वामी लवजी के पूर्व का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि किसी जैनाचार्य-साधु या श्रावक ने किसी समय मुँह पर रोराडाल मुँहपत्ती बांधी थी। और इसके विरुद्ध हाथ में मुंहपत्ती रखने के प्रमाण प्रचुरता से मिल सकते हैं। उदाहरणार्थ कुछ नमूने आगे चल कर दिखावेंगे।
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