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क्या. ती. म. मुं. बाँधते थे ?
कम नहीं हुआ पर इससे तो झगड़ा और भी बढ़ गया क्योंकि यह मुँहपत्ती तो देशी स्थानकवासी समुदाय की छोटी हैं अब प्रदेशी समुदाय वालों को बड़ी मुँहपत्ती वाले महावीर का चित्र तथा तेरहपन्थी लोगों को लम्बी मुंहपत्ती वाला महावीर की कल्पना करनी पड़ेगी, क्योंकि लौं कामत के साधु, देशीसाधु, प्रदेशी साधु और तेरहपन्थी साधुओं के मुँहपत्ती का मार्क एक नहीं पर भिन्न भिन्न है जिसका चित्र आपके सामने विद्यमान हैं।
(२) चित्र दूसरा-मुनि गजसुखमाल का है आप ध्यानास्थिति होने पर भी आपके मुंहपर मुंहपत्ती बँधादो है शायद् इनका यह मतलब हो कि बिना मुँहपत्ती बाँधे किसी कि मोक्ष ही नहीं होती हो पर इसमें भी एक त्रुटी तो रह ही गई। कारण मुनि गजसुखमाल कर्म क्षय कर मोक्ष में गये अर्थात् सिद्ध हुए उनकी पहिचान के लिये सिद्धशीला पर सिद्धों की मूर्ति स्थापित की पर उस सिद्धों की मूर्ति के मुहपर मुहपत्ती बंधाना तो भूल हो गये यदि यह भूल न करते तो यह भी सिद्ध हो जाताकि मुँहपत्ती डोराडाल मुंहपर केवल तीर्थकर ही नहीं पर सिद्ध के भी मुँहपत्ती बँधी रहती है और चलती कल्म में उस सिद्धों की मूर्ति के मुंहपर मुँहपत्ती करवा देते तो न लगता अधिक खर्चा और न रहती किसी प्रमाण की आवश्यकता जैसे कि तीर्थङ्कर महावीर
और मुनि गजसुखमाल के चित्र में आप कर बतलाया है। ___ मुनि गजसुखमाल के चित्र से एक निर्णय सहज में ही हो जाता है और वह यह है कि हमारे स्थानकवासीभाई बिना मूर्ति तो सिद्धों को पहचानभी नहीं सकते हैं इसीसे ही आपको गजसुस्त्रमाल मुनि सिद्ध होने की साबुती में सिद्धों की मूर्ति स्थापन करनी पड़ी
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