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________________ -मूर्ति-बतलाओ तो सही कि यहाँ आप एक के भी साधु है कहाँ ? क्या आप आकाश से तो बातें नहीं कर रहे है। --एक व्यक्ति-ये आपने चार साधुओं का चित्र दिया है न। मूर्ति--स! आप अपने पूज्य विद्वानों से पूछ के बात करो। क्या इस कागज स्याही के चित्रों को आप अपने साधु मान कर मान अपमान समझते हो इस हालत में शायद् इसी प्रकार कल पाषाण की मूर्ति को भी आप भगवान् मानने नहीं लग जाओ। -एक-नहीं जी हम पाषाण की मूर्ति को कभी भगवान नहीं समझते हैं। -मूर्ति--तो फिर इस स्याही और कागज के चित्रों को आप अपने साधु कैसे समझते हो। यदि जैसे स्याही और कागज के चित्र को आप अपने साधु समझ, मान अपमान का खयाल करते हो और इस से आपको यह बोध हो जाता है कि यह स्याही और कागज के चित्र से ही हमारी आत्मा पर असर पड़ता है इसी प्रकार तीर्थंकरों की पाषाणमय प्रतिष्ठित मति का भी अन्तरात्मा पर प्रभाव अवश्य पड़ता है तो आपके और हमारे बिच में कोई मतभेद नहीं है। यदि इस बात को आप स्वीकार करलें तो इन चित्रों से यदि आपको दुःख हुआ हो उसकी हम आप से क्षमा की अवश्च प्रार्थना कर आपको सन्तुष्ठित कर देगा। नहीं तो आपको यह कहने का कोई भी अधिकार नहीं है कि हमारे साधुओं को इन साधुओं के साथ क्यों खड़े किये हैं। आप तो इस को स्याही और कागज ही समझे कि मान अपमान के खयाल ही नहीं पैदा हो फिर भागे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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