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________________ और यह देशी साधुओं के लिये फायना मंद भी है क्योंकि यह महावीर देशी साधुओं के सिद्ध हुए हैं। ___-परदेशी साधुओं का भक्त । -कुच्छ भी हो पर जिस देशी साधुओं के साथ हमारे परदेशी साधुओं का संभोग ही नहीं है, उसके पास हमारे साधुओं को खड़ा कर देना, इसके लिये तो हम आपको अवश्य जवाब पूछेहोंगे। ___-मूर्ति०वाह ! वाह !! मेहरबान । आपने ठीक कहाँ। इस बीसवी शताब्दो में ८४ जाति के महाजन शामिल बेठ भोजन कर सकते हैं, मुशाफरखाने में हिन्दू मुसलनमान साथ में ठेर सकते हैं। इस हालत में आपके साधुओं के विच एक बड़ी खाई होने पर भी एक भूमिपर खड़ा रहने में इतना मान अपमान? शायद आपको यहतो दर्द नहीं है कि वे महावीर देशी साधुओं के सिद्ध होगये । -तेरहपन्थी साधुओं का भक्त-- नं१-२-३ के महावीर को हम तीर्थङ्कर कभी नहीं मानेगे क्योंकि महावीर वही हो सकता है कि जिसके लम्बी मुँहपत्ती हो जैसे कि हमारे पूज्यजी महाराज बांधते है। पर हमारेसाधु को आपने इन मिथ्यात्वियों के पास खड़ा कर दिया यह ठीक नहीं किया इससे तो हमारा अपमान होता है। -मूर्ति-अरे भाई ! आप इन तीनों को साधु सममें या मिथ्यात्वी पर मनुष्यत्व के नाते से तो आपके साधु मनुष्य हैं और ये तीनों साधु भी मनुष्य हैं। मनुष्य के साथ मनुष्य भूमि पर खड़े है । इस में मान अपमान की तो क्या बात है। --एक व्यक्ति - चाहे कुच्छ भी हो पर हमारे साधुओं का चित्र देने का आपको क्या अधिकार है। क्या इस बात का हम आपको जवाब नहीं पुछ सकते है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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