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________________ ३६६ नाइ का मुंह बांधना। है जैसे कि जैन लोग अपने मन्दिरों में सिद्धों की मूर्ति स्थापन करते हैं हमारे स्थानकवासियों का इस चित्रमय सिद्धों की मूर्ति और जैन के मन्दिरोंमें पाषाणमय सिद्धोंकी मूर्ति में कोई भेद नहीं है भेद है तो केवल हमारे स्थानकवासियों के हट कदाग्रह का है। (३) चित्र तीसरा-राजा श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार ने भगवान महावीर के पास दीक्षा लेने का निश्चय किया इस हालत में राजा श्रेणिक ने दीक्षा का महोत्सव कर नाई को बुलाया और बोर्डर दिया कि दीक्षा योग्य बाल छोड़ के मेघ कुमार की हजामत बनावो। तब नाई ने हाथ पग धोकर आठ पुड़ के कपड़ा से मुँह बांध कर मेघ कुमार की हजामत कर रहा है यह दृश्य तीसरा चित्र में बतलाया है इसका वर्णन श्री ज्ञातासूत्र पहिला अध्ययन में है तथा इसी प्रकार श्री भगवतीसूत्र शतक ९ उद्देशा ३३ में जमोली क्षत्री कुमार के अधिकार में आता है जैन सूत्रों में हजामत करने के समय अपनी मुँह की दुर्गन्ध रोकने के लिये केवल नाइ ने ही आठ पुड़ के कपड़ा से मुंह बांधने का उल्लेख मिलता है न कि साधु श्रावक का। इन तीनों चित्रों को साथ में देने का सिर्फ इतना ही कारण है कि जैन सूत्रों में दीक्षा के समय नाइ ने आठ पुड के वस्त्र से मुँह बांधा जिसका प्रमाण तो हमने सत्र ज्ञाताजी तथाभगवती जी का प्रमाण दे दिया है पर भगवान महावीर और मुनि गजसुखमाल के मुंह पर मुंहपती किस प्रमाण से बँधाइ है वह हमारे स्थानकवासी भाइ बतलावें वरना अपनी अज्ञता एवं उपयोग शुन्यता का कलंक तीर्थकर जैसे महापुरुषों पर लगाया है जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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