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मुँहपत्ती से दया
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पाप क्यों नहीं समझा जाय - हमारी राय में तो अवश्य सम
ना ही चाहिए ।
हमारे स्थानकमार्गी भाई मुँहपती द्वारा किस हद तक दया पालते हैं इसे सुनिये:- आपने कई चक्की चलाने वाली औरतों को मुहपत्ती बांधने का उपदेश दिया है और बतलाया है कि चकी चलाने वाली कहीं खुले मुँह गीत आदि गाकर वायुकाय के जीवों की हिंसा न करलें । तथा रसोई करने वाली कई औरते भी रसोई बनाते समय भी मुँहपर मुँहपत्ती बाँधती हैं । यही क्यों पर साधु या गृहस्थ मुँहपर मुँहपत्ती बान्धी हुई रखते हुए भी वादविवाद में मिथ्या बोलना कठोरवाक्य असत्य भाषा सावद्य वचन बोलने का जितना ख्याल न रखते हैं उतना मुँहपत्ती बाँधने का आह करते हैं शायद् पूर्वोक्त बोलने से भी खुले मुँह बोलने का पाप अधिक हो या मुँह पर मुहपत्ती जोर से बाँध लेने से पूर्वोक्त पापकारी वचन बोलने का पाप नहीं लगता हो कारण पाप भी मुँहपत्ती से डरता हो ? क्यों यही न या और कोई रहस्य है ।
प्रिय पाठक वृन्द ! आपने देख लिया यह अनूठा दयाधर्म जो चक्की चलते वक्त एकेन्द्रियादि लाखोंजीव मारे जायँ - रसोई में देहधारी अनेक प्राणी स्वाहा होजाय तो परवाह नहीं, पारस्परिक वैमनस्य से मनुष्यों की शिर फुड़ौवल बन जाय तो कोई हर्ज नहीं, किन्तु स्थानकमार्गी संसार के अनन्य उपकारी अदृष्ट कार्य केबल खुले मुह बोलने से वायुकाय के जीव न मरें यही इनका परमोत्तम दया धर्म है (1) वायुकाय के जीवों की रक्षा करना बुरा नहीं पर बहुत अच्छा है किन्तु मिथ्या कदामह कर अन्य सजीवों को और
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