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________________ क्या० ती ० मु० मु० बाँधते थे स्थानकवासी भाई मुँहपत्ती रखने के असली स्वरूप को समझ नहीं सके हैं कि जैन साधु या श्रावक मुँहपत्ती क्यों रखते हैं । यदि वे ( स्था० ) कुछ जानते हैं तो इतना हो कि हमारे पूर्वज मुँहपर मुँहपत्ती बांधते थे और खुला मुँह बोलने से जीव मरते हैं। इस लिए चाहे बोलो या मौन रक्खो, चाहे दिन हो चाहे रात, चाहे जागृत या सोते पर मुँहपर मुँहपत्ती बांधे रखना ही मोक्षका कारण मान लिया है। यदि साधुओं को प्रतिलेखन करते समय जब मुँहपत्ती खोली जाती है तब भी उस समय कोई गृहस्थ मुँह देख नहीं ले इस लिए मुँह पर कपड़ा डाल दिया जाता है। बस ! अंध परम्परा, और गतानुगति इसी का ही नाम है । ३५५ मुँह - पत्तो का आदर्श (महत्त्व ) और इसके पीछे जो विशुद्ध भावना रही है वह हमारे स्थानकवासी भाई नहीं समझते हैं । स्थानकवासी साधुओं को अभीतक इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि जैन साधु मुखवखिका क्यों रखते हैं ? और वह किस २ क्रिया में काम आती है ? । स्थानकमार्गी श्रावक सामायिक, पौष, प्रतिक्रमण आदि जब करते हैं तब मुँहपत्ती हो तो भी काम चलता है और न हो तो भी काम चल सकता है । एक कपड़े को घाटा ( किनारा) मुँहपर लपेट देने पर भी सामायिकादि क्रियाएं वे कर सकते हैं । परन्तु जैन श्रावकों के तो विना मुँहपत्ती सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमणादि क्रियाएँ हो ही नहीं सकती; और न साधुओं के प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, संथारा पौरसी, आलोचनादि क्रियाएं हो सकती हैं। जब स्थानकमार्गी भाई दिन में दो वक्त मुँहपत्ती को इधर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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