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________________ ३४९ क्या तीर्थ० मुं. मुं० बा० लोकाशाह के विषय में बहुत कुछ लिखा है । यद्यपि इन्होंने लौकाशाह द्वारा निषेध सामायिकादि पूर्वोक्त क्रियाओं का कोई स्पष्ट विरोध नहीं किया है तथापि दबी जबान से इन्हें स्वीकार करते हुए भी "मुंहपत्ती दिनभर मुँहपर बाँधना" इस विषय का तो कहीं आंशिक उल्लेख भी नहीं किया है । यह भी हमारी उपर्युक्त मान्यता को ही परिपुष्ट करता है । कि "मुँहपत्ती बाँधने का रगड़ा लौंकाशाह के बाद का है। लौकाशाह के समय का या उससे पूर्व का नहीं" इसमें यह एक प्रबल प्रमाण है । दूसरा फिर सबसे प्रबल प्रमाण यह है कि "लोकाशाह की परम्परा सन्तान में यति और श्रीपज्य आदि हैं, वे डोराडाल दिन भर मुँहपर मुँहपत्ती नहीं बाँधते हैं, और न मुंहपत्ती बाँधने वालों को श्रेष्ठ समझते हैं। यही नहीं, किन्तु उल्टा ऐसा करने वालों का घोर विरोध करते हैं । और स्पष्ट शब्दों में यह घोषित करते हैं कि श्रीपूज्य शिवजी और वजरंगजी ने अपने शिष्य धर्मसिंह और लवजी को अयोग्य समझ कर गच्छ से बहिष्कृत किया था और इसीसे धर्मसिंह ने आठ कोटि और लवजी ने मुँहपर मुंहपत्ती बाँधने की नई कल्पना कर, जिनाज्ञा और लौंकाशाह की मान्यता का भङ्ग कर उत्सूत्र की प्ररूपणा को थी, जिससे ही वे निन्हवों को पंक्ति में समझे जाते हैं। ___ श्रीमान् लौकाशाह के जोवन सम्बन्ध में हमें करीब २८ लेखकों के लेख प्राप्त हैं, किंतु उनमें केवल अर्वाचीन दो लेखकों के सिवाय सभी लेखकों का यही मत है कि लौकाशाह गृहस्थ था। और गृहस्थाऽवस्था में ही उसका देहान्त हुआ था। जब गृहस्थ रहते हुए लौकाशाह ने सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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