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________________ मुख वस्त्रिकाधिकार ३५० प्रत्याख्यान, आदि क्रियाएँ भी नहीं मानीं, तो मुँहपर मुंहपत्ती बांधने को तो उसे कोई आवश्यकता ही शेष नहीं रही। (१) स्था० साधु अमोलखर्षिजी ने अपने "शास्त्रोद्धारमीमासा" नाम के प्रन्थ में पृष्ट ६९ पर लिखा है कि लौंकाशाह ने १५२ मनुष्यों के साथ मुंहपर मुँहपत्ती बाँध दीक्षा ली किन्तु आपने यह नहीं बताया कि लौंकाशाह ने कब ? कहाँ ? और किससे दीक्षा ली । (२) स्था० साधु मणिलालजी अपनी “प्रभुवीर पटावली" नामक पुस्तक पृष्ट १७० पर लिखते हैं कि लोकाशाह ने अकेले पाटण में जाकर यति सुमतिविजयजी के पास वि. सं. १५०९ श्रावण सुदि ११ को यति दीक्षा ली" आपके कथनानुसार यदि लौंकाशाह ने यतिदीक्षा ली भी हो तो यह नि:संदेह है कि लौकाशाह मुँहपत्ती हाथ में ही रखते थे। ___ इस प्रकार उपर्युक्त इन्हीं दो महाशयों ने लौकाशाह कों दीक्षा लेने का लिखा है । परन्तु स्था० साधु संतबालजी तथा वाड़ीलाल मोतीलाल शाह अपने लेखों में लिखते हैं कि “लौकाशाह बिलकुल वृद्ध और अपंग था इससे यति दीक्षा नहीं ले सका" इस प्रकार शेष जितने भी लेखक हैं उन सबका यही मत है कि लौंकाशाह ने दीक्षा नहीं ली, किंतु गृहस्थ दशा में ही काल किया। अब यह सवाल पैदा होता है कि जब सब लेखक यही लिखते हैं कि “लौंकाशाह ने दीक्षा नहीं ली" तो फिर केवल स्था. साधु अमोलखर्षिजी और मणिलालजी ये दोनों ही लौकाशाह के दीक्षा लेने की नयी कल्पना क्यों करते हैं ? । इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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