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________________ मुख वस्त्रिकाधिकार ३४८ चली आरही थी। जिसके शास्त्रीय और ऐतिहासिक सैकड़ों प्रमाण अद्यावधि मी उपलब्ध हैं। कई एक लोगों का कहना है कि विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में श्रीमान् लौकाशाह हुए, उन्होंने अपना एक नया मत निकाला । उस समय मुँहपत्ती में डोरा डाल दिन भर मुँह पर बाँधने की एक नई रीति चलाई थी, परन्तु यह बात प्रमाण-शून्य केवल कल्पना मात्र ही है, क्योंकि लौकाशाह ने जब अपना नया मत निकाला था, तब उनकी मान्यता के विषय में लौंकाशाह के समकालीन अनेक विद्वानों ने अपने २ ग्रंथों में सविस्तार चर्चा की है । उन्होंने लिखा है कि लौंकाशाह, जैनाश्रम, जैनागम सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, दान और देव-पूजा कतई नहीं मानता था। लौकाशाह गृहस्थ था, और जब वह सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमणादि भी नहीं मानता था, तो मुँहपत्ती बाँधने की बात ही कहाँ रही ? यदि लौकाशाह ने मुँहपर मुँहपत्ती बाँधी होती, तो पूर्वोक्त बातों के साथ तत्कालीन लेखक उस समय के लिए बिलकुल नई इस प्रथा की चर्चा भी जरूर करते, परन्तु उन लेखकों ने ऐसा कहीं नहीं लिखा है । अतः यह बात स्वयं प्रमाणित होती है कि लौंकाशाह खुद मुंह-पत्ती नहीं बाँधी थी, किन्तु उनके बाद में २०० वर्ष पश्चात् यह प्रथा चालू हुई; इसका निर्णय आज अनेकों प्रमाणों से हो जाता है। वि० सं० १५७८ में लौकागच्छीय यति श्री भानुचन्द्र ने भी देखो वि० सं० १५४३ में पं० लावण्य समय कृत चौपाई, और वि० सं० १५४४ में 3० कमल संयम कृत चौपाई, तथा लोकाशाह के समकालीन मुनि वीकाकृत भसूत्र निवारण बत्तीसी । भादि Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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