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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३.४२
संघ- सत्ता, जाति संगठन तथा मान, प्रतिष्ठा, और तन मन एवं
धन से समृद्ध था । ( १२ ) एक पक्ष तो जिन तीर्थकरों का सायं प्रातः समय नाम लेता है, उन्हीं की बनी मूर्तियों की भर पेट निन्दा करता है, और दूसरा पक्ष तीर्थंकरों के मूर्ति की पूजा करता है परन्तु प्रति पक्षियों के अधिक परिचय के कारण पूर्ण आशातना नहीं टालने से आज उभयपक्ष इस स्थिति को पहुँच रहा है ।
(१३) आज इतिहास के साधनों से जो जैनियों का गौरव उपलब्ध होता है उसका एक मात्र कारण उनके मन्दिरों के निर्माण एवं उदारता ही है ।
(१४) आज अंग्रेज और भारतीय विद्वानों पर जैन धर्म का जो प्रभाव पड़ा है, जैन धर्मोपासकों की धवल कीर्ति के जो गुण-गान गाये जाते हैं, तथा भूतकालीन जैनों की जो जहुजलाली और गौरव का पता पड़ता है उसका सारा श्रेय इन्हीं जैन मन्दिरों को है। जैनों के इतिहास का अनुसंधान भी इन्हीं मन्दिरों से हो सकता है। जैनों ने मन्दिर, मूर्ति को मोक्ष का साधन समझ 'असंख्य द्रव्य इस कार्य में व्यय कर भारत के रमणीय पहाड़ों और राजा महाराजाओं के विशाल दुर्गों में, जैन-मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाई हैं ।
(१५) जैन मन्दिर मूत्रियों की सेवा पूजा करने वाले बिमारावस्था में यदि मन्दिर नहीं भी जा सकते हैं तो भो उनका परिणाम यही रहेगा कि आज मैं भगवान का दर्शन नहीं कर सका यदि ऐसी हालत में उसका देहान्त भी होजाय तो उसकी गति अवश्य शुभ होती है । देखा मंदिरों का प्रभाव ?
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