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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर ३३६ ___ आगे आपके पूज्यजी महाराज, चैत्य शब्द का अर्थ के लिए तथा तीर्थङ्करों की मूर्तियों की पूजा के लिए यद्वा तद्वा शब्द लिख अपने मगज की सब शक्ति का व्यय कर चुके हैं। किन्तु फिर भी मूर्ति का विषय इतना व्यापक सिद्धान्त है कि आपको इस विषय का पूर्णतया अभ्यास करने में बहुत समय की आवश्यकता है क्योंकि मूर्तिपूजा शास्त्रों से सिद्ध है सो तो है ही; किन्तु आज तो अनेक पुरातत्त्व विशारद पौवत्यि और पाश्चात्यों की शोधखोज से इतने ऐतिहासिक साधन उपलब्ध हुए हैं कि भगवान महावीर के पूर्व भी जैनों में मूर्तिपूजा खास धर्माराधन का एक अंग समझा जाता था। इस विषय में यदि विशेष जानना हो तो देखो "मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास प्रकरण पाँचवा।" इसके पढ़ने से आपको पूर्ण सन्तोष हो जायगा कि जैनों में मूर्तिपूजो का मानना सनातन से चला आया है। यदि आपके पूज्यजी महाराज का विशेष आग्रह आनन्दश्रावक के अधिकार में आया हुश्रा अरिहन्तचैत्य के बारे में ही है जिसका अर्थ पूज्यजी ने जैन साधु किया है और इसे सिद्ध करने को इधर उधर की ऊट पटांग अनेक बातें लिखी हैं, पर पहिले अपने घर में तो देख लेते कि हमारे पूर्वजों ने जैन मूत्रों में जहाँ चत्य शब्द आया है वहाँ उसका अर्थ साधु किया है या प्रतिमा ?-उदाहरण के तौर पर देखिये:(१)-स्थानकवासी साधु अमोलखर्षिजी - श्रीउववाई सूत्र में 'चइया' (चैत्य) शब्द का अर्थ यक्ष का ___ मन्दिर किया है। -श्री उववाइ सूत्र में पूर्णभद्र चैत्य का अर्थ किया है-मन्दिर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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