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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर प्रयत्न किया है क्योंकि आपके पूज्यजी के कथनाऽनुसार निश्चय हो जाता है कि महासती सुभद्रा परमेश्वर की त्रिकाल पूजा करने वाली थी, समझे न मेहरबान !
प्र०-अरे ! भाई ! यह क्या कहते हो कि सुभद्रा पूजा किया करती थी। पूज्यजी महाराज ने सुभद्रा का मूर्तिपूजना कहाँ पर लिखा है ?
उ०-पूज्यजी खुल्लम-खुल्ला तो कब लिख सकते हैं पर सत्य की झलक किसी प्रकार से आगे आए बिना नहीं रह सकती है।
प्र-तो अच्छा बताइये यह सत्य की झलक कहाँ से श्रा रही है ?
उ०-लीजिये:-"श्रीउपासकदशाङ्गसूत्र" पृष्ठ ४९ पर आपके पूज्यजी महाराज लिखते है।
“सुभद्रा ललाट फलकाऽवस्थितं तिलक, तस्य मुनेललाटे संलग्नम्"
हिन्दी:-सुभद्रा के ललाट में लगा हुआ तिलक मुनि के ललाट में भी लग गया" इसका अर्थ यही होता है कि महासती सुभद्रा जिस समय परमेश्वर की पूजा कर आई, और उसी समय मुनि भिक्षार्थ उस के घर पर गए, और उनकी आँख से फूस (तनखा) निकलाते वक्त उसका गीला तिलक मुनि के ललाट पर लग गया था । क्या पूज्यजी के इस कथन से महासती सुभद्रा का पूजा करना सिद्ध नहीं होता है ? (अपितु अवश्य होता है)
प्र०-क्या आपके यहाँ औरतें भी हमेशा पूजा करती हैं ? उ०-यह आपने कैसा अज्ञातपने का प्रश्न किया क्योंकिधर्म
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