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________________ मू० पु० वि० प्रश्नोत्तर ३२४ तो आजकल स्थानकवासी साधु जब तडातड़ मुँहपत्ती का डोरा तोड़ मूर्तिपूजा स्वीकार कर रहे हैं तब अवशिष्ट साधु मण्डली को इस प्रवृत्ति से रोकने के लिए ही या अबोध लोगों को आश्वासन देने के निमित्त यह मिथ्या प्रपञ्च रचा है। किन्तु सौभाग्यवश अब स्थानकवासी समाज भी पहिले जैसा अज्ञान नहीं है कि पूज्यजी जैसों की स्वकपोलकल्पित गाथाओं पर तनिक भी विश्वास करले । वे लोग तो पूज्यजी को प्रमाण पूछते हैं कि पौने तीन सौ वर्ष पहिले के किसी ग्रन्थ, शास्त्र या इतिहास में कोई प्रमाण हो तो बताओ ! अन्यथा केवल श्राप के कहने मात्र से कैसे मान लें कि पूर्व जमाना में डोरा डाल मुँहपत्ती मुँहपर बाँधी जाती थी, और इसके जवाब के लिये आपके पूज्यजी के पास प्रमाणका पूरा प्रभाव ही है । जब हाथ में मुँहपत्ती रखने के सैकड़ों प्रमाण विद्यमान हैं, तब मुँहपत्ती बाँधने का एक भी प्रमाण उपलब्ध नहीं। स्थानकवासियों के धर्म प्रवर्तकगुरु स्वयं लौंकाशाहने किसी भी अवस्था में डोरा डाल दिनभर मुँहपर मुँहपत्ती नहीं बाँधी थी, और न लौंकाशाहके बाद २०० वर्षों तक किसीने भी मुंहपर मुंहपत्तो बाँधी, यही क्यों लौंकामतके श्रीपूज्य और यती वर्ग आज भी सैकड़ों विद्यमान हैं किन्तु वे मुंहपर मेहपत्ती बाँधनेका घोर विरोध करते हैं और डोरा डाल मुंहपत्ती बाँधने वालों से प्रमाण पूछते हैं कि वे किस प्रमाण से मुंहपर डोराडाल मुंहपत्ती बाँधते हैं। यदि आपके पूज्यजी महाराज में कुछ भी ताकत है तो वे पहिले अपने पूर्वजोंकी संतानको प्रमाण बता कर उनसे डोराडाल मुंहपत्ती महपर बंधावे, बादमें दूसरोंसे प्रश्न करें । महासती सुभद्राको पूंजणी और डोरासहित मुंहपत्ती से शोभायमान करने का पूज्यजी ने मिथ्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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