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________________ ३२१ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर मुँहपत्ती में डोरा डालकर बांधने की प्रवृत्ति तो जरूर प्राचीन है यह तो आप मानते हैं न ? उ०- यह प्रवृत्ति प्राचीन है अथवा अर्वाचीन, इस विषय में तो मैंने एक स्वतन्त्र पुस्तक लिखी है । परन्तु इस बात की पुष्टि के लिए आपके पूज्यजी ने कुछ भी प्रमाण नहीं दिया है । तो हम उसे प्राचीन कैसे मानलें ? प्र० - प्रमाण क्यों नहीं दिया है यानि जरूर दिया है । देखो "श्री उपासक दशांगसूत्र" में निम्न लिखित प्रमाण दिया है: - "जिस नगरी में भगवान् महावीर ने “डोरा सहित मुखवस्त्रिका " बांध कर विधि पूर्वक सामायिक करने से अनन्त कर्मों की निर्जरा होती है । ऐसा उपदेश महाराज कूणिक को दिया था" -- उपासक दशांग सूत्र पृष्ठ ५४ X X X जयपठ्ठे मुँहपति सदोरगं बंधए मुहे निच्चं "पृष्ठ २१३” अर्थात् खास भगवान् ने कूणिक को कहा है कि डोरा सहित मुँहपत्ती मुँह पर बाँध के सामायिक करने से अनंत कर्मों की निर्जरा होती है तथा गुरु के लक्षण बतलाते हुए स्वरचित संग्रह गाथाओं में बतलाया है कि जयगा के लिए डोराडाल मुँहपत्ती हमेशा बांधी रक्खे वही साधु एवं गुरु कहला सकता है। इस से अधिक क्या प्रमाण चाहते हो ? उ०- वाह ! आपका प्रमाण बड़ा हो जबर्दस्त है । जैसेकिसी ने कहा कि मेरी मां सती है । दूसरे ने पूछा कि इसका सबूत ? इस पर वह वक्ता कट बोल उठा कि मैं कहता हूँ (२१) ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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