________________
मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३२२
कि मेरी मां सती है इससे अधिक प्रमाण क्या चाहते हो ? बस ठीक यही बात आप पर भी चरितार्थ होती है। इससे ज्यादा श्राप या आपके पूज्यजी भी क्या प्रमाण बतला सकते हैं। शास्त्रीय और ऐतिहासिक प्रमाण तो अति दुर्लभ हैं किन्तु पौने तीन सौ वर्षों पूर्व किसी श्रापके पूर्वजों ने डोराडाल मुँहपर मुँहपत्ती बांधी हो उसका भी कोई चित्र या हस्त लिखित प्रमाण नहीं बतला सकते हो । इससे शायद यह भ्रम होता है कि आपके पूर्वजों को इतना भी ज्ञान नहीं था, अन्यथा आपके पूज्यजी की भाँति टीका बनाकर आपके प्रमाण के लिए छोड़ जाते तो इसवक्त आपको कम से कम पौने तीन सौ वर्षों का प्राचीन प्रमाण तो उपलब्ध हो ही जाता पर करे क्या, या तो उनको वत्सूत्र भाषण का थोड़ा बहुत भय होगा या इतनी कुतकें उनके मंगज में पैदा ही नहीं हुई होंगी ।
प्र० - तो क्या हमारे पूज्यजी ने यों ही लिख दिया कि सुभद्रा को पूंजणी और डोरा सहित मुँहपती से शोभायमान कर ससुराल भेज दी ?
उ०- हाँ ! यों ही नहीं लिखते तो पूज्यजी को कोई प्रमाण देना था । देखिये - श्री भगवती सूत्र शतक ११ उद्देश्या ११ में राजकुमार महाबल का आठ राजकन्याओं के साथ लग्न होना और उसमें से प्रत्येक कन्या के पिता का अपनी २ पुत्री को १९२-१९२ वस्तुओं का दत्त दायजा देना मूलसूत्र के पाठ में लिखा मिलता है। जिसमें बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी वस्तु का उल्लेख है पर पूंजणी और डोरासहित मुँहपती की कहीं गन्ध भी नहीं आती है । इसी प्रकार अन्तगढ़दशाङ्गसूत्र में सुलसा के छः पुत्रों के विवाह प्रसङ्ग ३२- ३२ कन्याओं के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org