________________
३१७
मू० पू०वि० प्रश्नोत्तर
एक तीटोड़ी नाम का खुद्र जीव सोने के समय दोनों पैर आकाश की ओर ऊँचे कर देता है उसका अभिमान है कि श्राकाश खड़ा है वह मेरे पैरों के आधार पर ही है नहीं तो कभी का टूट पड़ता " बस इसी कहावत को आप ठीक चरितार्थ कर रहे हैं कि इस बात को हम नहीं मानें। पर आप पर शासन का आधार क्या ? कुछ भी नहीं ।
प्र० - हमारे पूज्य घासीलालजी महाराज ने हाल ही में "श्री उपासकदशाङ्गसूत्र" की संस्कृत में टीका, छाया तथा हिन्दी गुजराती में अनुवाद लिख कर मुद्रित करवाया है । उसमें से भी कई एक प्रश्न श्रापको पूछते हैं । कहिये ! क्या आप कृण कर उत्तर दे सकेंगे ?
उम्मे- क्यों नहीं खुशी से उत्तर दूँगा; पूछिये !
प्र० - पूर्वोक्त " उपासकदशांगसूत्र" पुस्तक के पृष्ठ ४७ पर हमारे पूज्यजी ने लिखा है कि:
www.
66
- उस बुद्धदास को ही जिनदास ने अपनी स्वभाव से भद्रा सुभद्रा नाम की पुत्री विवाह विधि से प्रदान करदी और विविध प्रकार के रत्न, सुवर्ण, हीरे आदि के आभूषणों के साथ दास, दासी, आसन, यान, आदि तथा पूंजरणी. डोरासहित मुखवस्त्रिका से शोभाय मान करके कुल की रीति के अनुसार सम्मान के साथ ससुराल भेजदी" -
इस लेख से यह पाया जाता है कि पूर्व जमाना में जैन लोग अपनी पुत्रियों का व्याह कर ससुराल भेजते थे तब रत्नादि के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org