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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
के श्रावकों ने जिनप्रतिमा की पूजा की हो, चाहे द्रौपी ने, चाहे आनन्द और चाहे अम्बड़ ने, चाहे सुरियाम, चाहे शक्रेन्द्र ने पूजा की हो, पर ये सब चरित्राऽनुवाद है।" यदि विधिवाद में कहीं पर प्रतिमा पूजन लिखी हो तो बतलाओ, हम मानने को तैयार हैं । कहिये इसका क्या जबाब देते हो ?
उ०- पहिले आप अपने पूज्यजी से यह तो समझ चुके हैं न कि विधिवाद किसे कहते हैं और चरित्राऽनुवाद किसे कहते हैं और किसी वस्तु का विधि-वाद न होने पर उसको चरित्राऽनुवाद से मानते हैं या नहीं ?
प्र० - हाँ, मैंने समझ लिया है । विधि-वाद उसे कहते हैं कि जिसका संघ को उद्देश्य कर तीर्थङ्करों व गणधरों ने विधान करना बतलाया हो, उसे विधि-वाद कहते हैं और कई एक व्यक्तियों ने अपने जीवन में जो कुछ कार्य किया हो, उसे चरित्राऽनुवाद कहते हैं। समाज को यह श्रावश्यक नहीं कि यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में जो कुछ किया, उसे स्वयं भी करे, जैसे-सुरियाम, शकेन्द्र, द्रौपदी या मृगवती, श्रानन्द या अम्बड़ और तुंगियानगरी के श्रावक या सावत्थी के श्राबकों ने जिन-प्रतिमा को पूजी तो इससे हम सब समाज भी मूर्तिपूजक बन जाये ।
उ०- यह सवाल आपने केवल मूर्ति-पूजा के लिये ही शोध निकाला है, या आपके और विधानों के लिए भी लागू हो सकता है ?
प्र० - हाँ, हमारे और विधानों के लिए भी लागू हो सकता है,
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