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________________ ३०३ मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर विद्वान हैं और अनेक विषयों पर अनेकानेक ग्रन्थों को निर्माण कर साहित्य की सेवा करने वाले प्रसिद्ध हैं। और उन्हीं महापुरुषों का प्रभाव है कि आज संसार के साहित्य में जैन साहित्य का सर्वोपरी आसन समझा जा रहा है । इतना ही क्यों, पर आज तो पौर्वात्य और पाश्चात्य विद्वान उन धुरंधरों के रचित साहित्य की मुक्त कण्ठ से भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे हैं। समझे न मेहरबान, यहां तो "ज्ञान क्रिया से मोक्ष" को मोक्ष मार्ग माना जाता है। प्र०--यह तो आप को भी स्वीकार करना पड़ेगा कि हमारे बनिस्बत श्राप के अन्दर आडम्बर विशेष बढ़ गया है ? उ.--हमारे तो तीर्थंकरों के समय भी यथावश्यक्ता आडंबर था ही जैसे सूरियामादि अनेक देवों ने भगवान के समवसरण में नाटक किया । श्रेणिक उदाइ चटेक दर्शानभद्र कूणिकादि अनेक भूपतियों ने भगवान् का वन्दन निमित नगरों को सुशोभित करना, सड़कों को छटकाना, पुरुषों और धूपों से दिशाएँ सुगन्धी मय बनाना, हस्ती अश्व स्थ और पैदल की सजावट करना, इत्यादि शंक्ख पोक्खली का स्वामिवात्साल्य द्रौपदो की सोलह सत्रह भेदो पूजा, धर्मचक्र इन्द्रध्वज आशोकवृक्ष भामण्ड. लादि सब प्रकार की सामग्री से जिन शासन की प्रभावना करते ही आये हैं। पूर्व जमाने में समाज की संख्या और समृद्धि विशाल थी । उस हालत में वे विशेषाडंबर करते थे आज हमारे पास जो है उस प्रमाण में हम भी करते हैं परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि जिस आडम्बर की जो लोक निंदा करते थे पाप और महापाप बतलाते थेवे हमारे से भी कई गुणांआगे पहुंच गये है। क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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