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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर ३०२ गुरुजी आंबिल एकासना तक के पचाक्खान तक भी नहीं करा जानते हैं और न कोई तपस्या का उद्यापनादि प्रभाविक विधान ही करते हैं जब संवेगियों में तपस्या के शुद्ध प्रत्याख्यान और तपस्या के बाद पूजा प्रभावना स्वमिवात्सल्य उज्जमना करते है बाना गाजा से मन्दिरों के दर्शन करते हैं। जिस चम्पाबाई की तपस्या का प्रभाव सम्राट् बादशाह अकबर पर हुआ था और उसने आचार्य श्री विजयहीरसूरिको आमन्त्रण पूर्वक बुलवा के भेट की एवं उपदेश सुना। फल स्वरूप में एक साल में ६ मास तक भारत भर में हिन्सा बन्ध करवाने का फरमान लिख दिया इतना ही क्यों, पर आचार्य श्रीजगच्चन्द्रसूरि की घोर तपश्चयों के कारण चित्तोड़ के महाराणा ने आप को 'सपाविरूद' दिग उनकी संतान में तप का करना सेकड़ों वर्षों से आज पर्यन्त चला आ रहा है। फिर भी संवेगी समुदाय में विशेष लक्ष ज्ञानाभ्यास की और दिया जाता है क्योंकि शास्त्रकारों का यही अभीष्ट है कि पहिले ज्ञान और बाद में क्रिया एवं तपस्या ज्ञान के अभाव में तपस्या केवल काया कष्ट एवं निःसार बतलाई है। प्रत्येक दीक्षित के पाठ में यही आता है कि दीक्षा लेते ही सब से पहिला सामायिकादि ग्यारांग या चौदहपूर्व का ज्ञान पढ़ा और बाद में चोथ छट्टमादि तपस्या की । जब आप अपनी समुदाय में देखिये धोवण और छास के आधार पर मास मास की तपस्या करने वालों को बोलने का भी होंसला नहीं । यदि उनकी प्रतिक्रमण की परीक्षा ली जाय तो १०० में पांच साधु साध्वियों के प्रतिक्रमण शायद शुद्ध मिलेंगे ? तब संवेगी साधुनों में आपको ऐसे सैंकड़ों साधु मिलेंगे जो उच्च कोटि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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