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________________ - ३०१ मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर कितना मिथ्याभिमान ? परन्तु आज भी स्थानकवासी समाज में ऐसे कई मुमुक्षु आत्मा हैं कि वे अच्छी तरह से समझते हैं कि संवेगियों की श्रद्धा और क्रिया शास्त्रानुसार है परन्तु क्या करें अब संवेगी बने तो इतना बड़ा प्रतिक्रमण और दूसरी भी क्रिया करनी पड़े इत्यादि विचार से वे इच्छाके न होनेपर भी बाड़ाबन्धी में अपने दिन निकाल रहे हैं। कभी तीर्थ और छोटे प्रामों में जाते हैं तब वे तीर्थंकरों की शान्त मूर्ति के दर्शन कर उल्लासित होतेहैं । प्र०-खैर । क्रिया श्राप के धर्म में ज्यादा है और हमारे साधु भी आपस में बातें करते हैं कि क्रिया का विधि विधान संवेगियों में अधिक है परन्तु यह तो आप को भी मानना पड़ता है कि तपस्या हमारे अन्दर ज्यादा है ? ___उ०-आप के अन्दर बाल-तप है क्योंकि शास्त्र में तो तीनोपवास के बाद एकान्त गरम पानी पीने का विधान है तब आप के अन्दर मुँह से और पत्रिकाओं में छपवाते हो कि अमुक महाराज ने एक मास एवं दो तीन चार मास के उपवास किया है और उस तपस्या के अन्दर खाटा, मोठा, चरका धोवण ही नहीं पर अधबिलोई छास तक भी पी जाते है । क्या यह समवायांग जी सूत्र समवाय ३० के अनुसार महामोहनीय कर्म बन्धका कारण नहीं है क्योंकि वहां स्पष्ट लिखा है कि तपस्वी नहीं और तपस्वी कहलावे तो महामाहेनीय (सितर कोड़ा कोड़ सागरोपम के) कर्म बन्धते हैं। तब संवेगियों के अन्दर एक उपवास से मास खामण दोमास तीनमास और चारमास की तपश्चर्या करने वाले भी सिवाय गरम पानी के कुछ भी नहीं पीते हैं साथ में आप की तपस्या तो केवल भूखा मरने की है क्योंकि आपके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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