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मू० पू० वि० प्रश्नत्तोर
२०-प्रतिक्रमण (देवसी) विधि- | विधि का क्रम नहीं है।
पूर्वक । २१-चैत्यवन्दन ( चउकषाय ) ०००कुछ नहीं। २२-संस्तारा पौरसी। ०००कुछ नहीं। २३-पर्वादि तिथियों में बड़े देव- | ०००कुछ नहीं।
वन्दन किये जाते हैं जिसमें दो दो तीन तीन घण्टे तक तीर्थंकरों को स्तुति वन्दन
xx किये जाते हैं। २४-बड़ी दीक्षा के योगोद्वाहन ०००कुछ नहीं।
में एक मास तक लगातार
आबिल करते हैं। २५-कोई भी सूत्र पढ़ो उनके ०००समझते भी नहीं हैं।
योगोद्वाहन करने पड़ते हैं जो श्रीभगवती सत्र के लगातार छः मास आबिल करने पड़ते हैं।
उपरोक्त तालिका से आप समझ सकते हो कि स्थानकवासी साधुओं में ऐसी कोई भी धर्म क्रिया नहीं कि जो वह शास्त्रानुसार हो और जिसको संवेगी साधु नहीं करता हो, पर संवेगियों के अंदर ऐसी बहुत सी धर्म क्रियाएँ शास्त्रानुसार हैं कि जिसको श्राद्यविधि स्थानकवासी समझते भी नहीं हैं तो करना तो रहा ही कहां। ' फिरभी यह कहना कि हमारी कठिन क्रिया न पलने से स्थानकवासी साधु, संवेगी हो जाते है, यह कितना अन्याय, यह
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