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________________ मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर ३०४ किसी संवेगी साधुओं के चतुर्मास में और विशेष पर्युषण जैसे श्राराध्य दिनोंमें भट्टिये धधकती देखी या सुनी है जैसे स्थानकवासी साधुओं के चतुर्मास में देखी जा रही हैं । क्या किसी संवेगी साधुओं के तपस्या के पारणे में सैकड़ों लोग एकत्र होना देखा है जैसे स्थानकवासियों के यहां होता है। इसी प्रकार दीक्षा समय, पूज्य के मृत समय, इतना ही क्यों, पर हलते-चलते पूज्यजी एक नगर में पधारते हैं वहां पांच सात दिनोंमें हजारों का धूआँ करवा देते हैं । तेरहपन्थियों के पाट महोत्सव के दिन हजारों भावुक एकत्र होते हैं और रेल्वे को हजारों रू० किराये के देते हैं। अब सोचिये पूज्यजी के दर्शन का पुन्य ज्यादाहै या रत्वे के पैसों से पांचेन्द्रिय प्राणियोंकी हिंसा होगी उसका पाप ज्यादाहै फिर भी संवेगी समुदायतो बहुत प्राचीन वृद्धहै कि उनमें इतना आडम्बर नहीं रहा है पर हमारे स्थानकवासी और तेरहपन्थो अभी बालावस्था में हैं इसलिये आडम्बर और प्रारम्भ में संवेगियों से कई गुणे आगे बढ़े हुए हैं और न जाने भविष्य में और कहाँ तक बढ़ेगा क्यों ठीक है न मेहरबान ! फरमाइये और भी आपको कुछ पूछना है प्र०-मूर्तिपूजा का आप इतना आग्रह क्यों करते हैं ? क्या मूर्तिपूजा ने देश को कम नुक़सान पहुँचाया है ? पशु तो क्या पर नरबलि की प्रथा मूर्तियों द्वारा ही प्रचलित हुई है ? ____उ०-आप साधुओं का आग्रह क्यों करते हैं ? कारण, क्या पशु और क्या मनुष्यों का बलिदान और क्या मांस-मदिरा का प्रचार यह सब साधुओं द्वारा ही हुआ है और आज भी हजारों साधु मांस भक्षण करते हैं। प्र०-वे साधु हमारे जैन के एवं हमारी समुदाय के नहीं हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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