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________________ मु० पू० वि० प्रश्नोत्तर २९८ वन्दन जो वीतराग का xx भाव स्तव करते हैं। ४-भरहेसर की स्वद्याय जिसमें ०००नियमत स्वद्याय नहीं क उत्तम पुरुषों के गुणस्तव है ५-विधिपूर्वक प्रतिक्रमण (गई) विधि नहीं पर छोटा-सा प्रति __क्रमण करते हैं। ६-श्रीसीमंधरतीर्थकरका तथा ०००नहीं है। सिद्धाचल का चैत्यवन्दन । ७-क्रमशः प्रतिलेखन जिसमें | ०००न तो क्रम है और न हेतु जितनेपदार्थोकी प्रति लेखन ही है जहां बैठे वहां कपड़े की जाती है वह सब हेतु देख लेते हैं। सहित करते हैं। ८-गुरुवन्दन-स्वद्याय और विवस्था पूर्वक इसमें एक भी सज्जातरकाघर तथा सूक्षम ___ काम नहीं है । कार्य तक का भी गुरु श्रा देश लिया जाता है। ९-मन्दिर जाकर चैत्यवन्दन ०००मन्दिरों की निन्दा करते हैं। करते हैं (तीर्थकरों की xx भावस्तव-भक्ति। १०-पौरसी भणाणी मुँहपत्ती ०००समझते भी नहीं हैं। का प्रतिलेखन । ११-पठन पाठन करना। पठन पाठन करना। xx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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