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________________ २९७ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर कठिन है जिन्होंसे नहीं पलती है वे लोग हमारे से निकल कर संवेगी बन जाते हैं। . उ०-यह केवल अपने भक्तों को आश्वशना देकर आंसू पूंछना ही है। भला, आपही सोचिये जिन्होंने दश बीस और तीसतीस वर्ष तक तो आपकी क्रिया पाली, आपकी समाज में उन्हों की बड़ी ही मान प्रतिष्ठा रही और आप लोग वाह-वाह करते थे जहाँ तक उन्होंने आपको समुदायका त्याग नहीं किया, फिर आपकी समुदाय का त्याग करते ही वे कैसे शिथिलाचारी हो गये ? इसको आप सच्चे हृदय से सोच सकते हो । यदि एक दो व्यक्ति के लिये तो श्राप स्वेच्छा कल्पना कर सकते हो और भद्रिक जनता उसे मान भी ले पर सैंकड़ों साधु निकल जाना और जिस समुदाय में जावें वहाँ प्रतिष्ठा प्राप्त करना यह कोई साधारण बात नहीं हैं । अब हम आपका भ्रम निवारणार्थ कतिपय उदाहरण यहाँ उद्धृत कर बतलाते हैं। संवेगी मुनियों की दिनचर्या स्थानकवासी साधुओं की दिनचर्या १-जितनी धर्म क्रिया करते हैं ०००स्थापनाचार्य नहीं रखते हैं वह स्थापनाचार्य के सामने इसलिये सब क्रिया अवि अदब के साथ करते हैं। वस्थ ही करते हैं । २-पिछली रात्रि में उठ कर ०००इस क्रिया को जानते भी इर्यावही पूर्वक कुसुमिणं नहीं हैं जा खास जरूरी है। दुसुमिणं० का काउस्सग्ग करते है। ३-जगचिन्तामणिका चैत्य- । ०००नहीं करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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