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________________ भू० पू० वि० प्रश्नोत्तर २९६ प्यासा रहेगा । हम तो गृहस्थ हैं और प्रारम्भ में ही बैठे हैं धोवण बनाया तो इसमें हुआ क्या ? महाराज--नहीं। धोवण बनाने में तो कुछ नहीं परन्तु जो कुछ पाप और महापाप है तो गरम पानी बनाने में हैं। ____ श्रावक-नहीं महाराज हमारा प्राम छोटा है कभी साधु आते हैं तो हम धोवण भी करते हैं और गरम पानी भी करते हैं पर थोड़े दिनों पहिले आरजियाजी आये थे वे बाईकों गरम पानी करने के सोगन ( त्याग ) करवा दिया इसलिये बाई ने गरम पानी नहीं किया है। _ महाराज-क्यों भाई ! केवल गरम पानी का हो त्याग क्यों किया, क्या धोवण करने में पानी के जीव नहीं मरते ? और उसका पाप नहीं लगताहै ? श्रावक--धोवण बनाने में पानी के जीव तो मरते ही हैं। महाराज--फिर भारजियों ने धोवण करने के त्याग क्यों नहीं कराये ? श्रावक -महाराज ! हम तो गृहस्थ हैं । महाराज-अच्छा भाई धर्म-लाभ । उपरोक्त संवाद से आप समझ सकते हो कि कठिनाई धोवण पीने में है या गरम पानी पीने में । कदाचित् संवेगी साधुओं को गरम पानी मिल भी जाय तो उसको ठोरने में कितना समय चाहिये ? इस हालतमें भी यह कहदेना कि धोवण पीने में कठिनाई यह कितना अन्याय ? और अपनी शिथिलता का दोष औरों पर डालना यह कैसी माया कपटाई । .. प्र०-तब फिर कई लोग यह क्यों कहते हैं कि हमारी क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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