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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर श्रावक-धारो मेरे साथ दरोगों के वहाँ से आपको धोवरण मिल जायगा।
महाराज-दरोगा मॉस मदिरा तो नहीं खाते हैं न । श्रावक-ये तो उन लोगों में प्रथा है। 'महाराज-बस ? हम ऐसे घरोंका आहार पानी नहीं लेते हैं।
श्रावक-हमारे महाराज तो वहां से धोवण चटनी, शाक और रोटो ले आये हैं फिर आप ही नहीं लेते हैं ऐसा क्या कारण है ? ___ महाराज--जिन घरों में मांस मदिरा खाते हों, वासी विद्वल नहीं टालते हो, सुवा-सुतक और ऋतुधर्म का परहेज नहीं रखा जाता हो, ऐसे घरों से आहार पानी साधुओं को नहीं लेना चाहिये क्योंकि ऐसे अशुद्ध श्राहार पानी खाने पीने से बुद्धि विध्वंस और चित्तवृति मलीन हो जाती है इसलिये शास्त्रकारों ने ऐसे घरों का आहार पानी लेना मना किया है।
श्रावक-जब तो आपके लिये गरम पानी करना पड़ेगा पर इसमें प्रारंभ होगा?
महाराज-मैं कब कहता हूँ कि तुम हमारे लिये गरम पानी करो।
श्रावक-तो क्या आप हमारे ग्राम में भूखे प्यासे रहेंगे ? महाराज--इसमें क्या, हम साधु हैं । श्रावक-दूसरे महाराज तो हमारे यहाँ से धोवण ले गये । महाराज-वह धोवण किसके लिये बनाया था ? श्रावक--भद्रिकपना से सत्य कह दिया कि महाराज के लिये। महाराज-इसमें प्रारम्भ हुआ, वह पाप किसको लगेगा। • श्रावक-पर भारम्भ नहीं करे तो क्या इस गरमी में साधु
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