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भू० पू० वि० प्रश्नोत्तर भूमि पर परठते हैं । वह भूमि बहुत दिनों की गीली होने से निगोद (नीलण फूलण) के अनन्त जीव संयुक्त होती है । उस घोवण के पानी एवं फुवारे परठने से एक ओर तो धोवण के स्पर्श से वे निगोद के अनन्त जीव मरते हैं, तब दूसरी ओर वे धोवण के त्रसजीव गायों आदि के खुरों से बुरी हालत में मरते हैं। इस प्रकार वनपाप की गठरी शिर पर उठाते हुए भी आप अपनेको उत्कृष्ट समझना इसमें सिवाय अज्ञानता एवं अन्ध पर. स्परा के और क्या हो सकता है इसके विषय में एक खास अनुभव घटना आपके सामने रख देता हूँ। जो खास कर मनन करने काबिल है। ___ एक छोटा गामड़ा में प्रोष्मऋतु के समय एक ओर से तो संवेगी मुनियों का आना हुआ तब उसी दिन उसी प्राम में स्थानकवासी साधुओं का पधारना हुआ पर श्रावकों के घर थोड़े
और विवेक का भी अभाव था सिर्फ एक विधवा बहन स्थानकवासी साधुओं के परिचय वाली थी कि उसने अपने घर पर जाकर थोड़ा धोवण बनाया और वे साधु जा कर धोवण लाया पर गरमी के समय इतना पानी से क्या होने वाला था। साधुप्राम में जाट माली दरोगा वगरह इतर जातियों के वहाँ से और अन्त में कुंभारों के वहाँ से मिट्टी का पानी ले आये पर संवेगी साधु तो भूखे प्यासे ही बैठे रहे। इतने में एक श्रावक श्राया
और कहने लगा कि- श्रावक-महाराज, आप भी गोचरी पधारो ? ..
- महाराज- श्रावक, मैं घरों में जाकर पाया हूँ। किसी घर में गरम पानी नहीं मिला। फिर केवल गौचरी को ही क्या करें?
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