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________________ २८८ मू० ५० वि० प्रश्नोत्तर और भारत के बाहिर अनार्य देशों में भी अहिंसा धर्म का प्रचार किया था, आचार्य रत्नप्रभसरि ने हिंसक मनुष्यों को अहिंसक बनाया, जो ओसवाल नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं। प्राचार्य हेमचन्द्रसरि ने अट्ठारह देशों में अहिंसा का झंडा फहराया। उनके अहिंसा उपदेश को श्रवण कर भक्त लोगों ने तालाब, नदियें, कुआ, आदि पर जल छानने के वस्त्र बाँध दिये थे, ऊँट बकरी आदि बन के एवं नगर के पशुओं को भी छना हुआ जल पिलाया जाता था। प्राचार्य विजयहीरसरि ने बादशाह अकबर को उपदेश देकर एक वर्ष में छः मास तक हिंसा बन्द करवाई । बहुत से राजाओं के राज्यों में अक्ते (व्रत विशेष ) पलाये गये। इस प्रकार के अहिंसा के उपदेश देने वाले महापुरुषों को क्या आप हिंसा-धर्म के समर्थक कहते हैं ? बलिहारी है आपकी बुद्धि की, आपके बिना ऐसे निःसार आक्षेप अन्य कौन करे ? कारण जैनेतर लोग तो जैनों को कट्टर अहिंसा धर्मी मानते हैं और आप उन्हें हिंसा-धर्मी कहते हो । यही आपकी कृतज्ञता (!) का परिचय है कि जिन महानुभावों ने आपके पूर्वजों को माँस मदिरादि का सेवन छुड़ाया उन्हें आप हिंसाधर्मी कहते हो । क्या दया-दया के रटनेवाले अपने जन्म से आज पर्यन्त पूर्वोक्त कार्यों का एक अंश मात्र भी अहिंसा का प्रचार करना बतला सकते हैं ? या दूसरों की व्यर्थ की निन्दा करना ही अहिंसा समझ रक्खी है ? प्र०-ऐसा तो नहीं; पर आप मर्तिपूजा में हिंसा करके धर्म मानते हो, इसीसे हम ऐसा कहते हैं ? उ०-सिद्धान्तों में मूर्तिपूजा की जो विधि बताई है, उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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