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________________ २८० मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर मूर्तिपूजक जैन भारत के चारों ओर फैले हुए हैं। स्थानकवासियों की ऐसी शायद ही कोई बस्ती हो जहाँ मूर्तिपूजकों का बिलकुल अस्तित्व न हो। यह छोटे ग्रामों की नहीं पर बड़े नगरों की बात है। इस हालत में मूर्तिपूजक हम श्वेताम्बिरियों का नितांत अस्तित्व मिटा आप अपने को ५ लाख समझना यह भ्रम नहीं तो और क्या है ? --भगवान् ने तो जगह २ पर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया है और श्राप हिंसा में धर्म क्यों बताते हो। ___ उ०-गजब २ यह किसने कहा ? क्या आप किसी धोखेबाज के फन्दे में तो नहीं फंस गए हो, जो ऐसी बिना सिर पैर की बातें करते हो ? हम क्या कोई अनजान जैन भी हिंसा में धर्म नहीं मानता है ? जैन धर्म का तो “अहिंसा परमो धर्मः" यही महा वाक्य है, हिंसा मे धर्म माननेवाले का जैन, मिथ्यात्वी समझते है । यदि जैन हिंसा में ही धर्म मानते तो अधिकाधिक हिंसा करते फिर एकेन्द्रिय को हिंसा ही क्यों करें ? पंचेन्द्रिय की हिंसा करें जिससे धर्म भी अधिकाधिक हो । वाह महाशय ! वाह ! क्या किसी मूर्तिपूजक ने यह कहीं लिखा यो कहा है कि हिंसा करने में धर्म होता है ? प्र०-मूर्तिपूजकों के मुँह से तो नहीं सुना और न उनके लेख में पढ़ा, पर कई लोग ऐसी बातें कहते जरूर हैं ? उ. कई लोगों के कहने से जैनों पर व्यर्थ दोषारोपण करना यह कितना भारी अन्याय है ? जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक अहिंसा धर्म के कैसे प्रचारक हैं यह किसी से छिपा नहीं है। आर्य सुहस्ती सरि के उपदेशों से सम्राट् सम्प्रति ने भारत Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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