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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर पधारें पर एक बात आप से पूछ लेते हैं कि यदि आप जैसे नवकार मंत्र गिनने वाले भी दक्षिण की नरक में पधारेंगे तो विचारे कर कर्मी कसाई कहाँ जावेंगे ? प्र०-हम तो संसार के लिये आरंभादि हिंसा करते हैं और श्राचारांगसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र में पूर्वोक्त पाठ धर्मार्थ हिंसा करने का है । ____उ०-मले। श्रापतो संसार के लिए कह कर छूट जाते हो पर केवली भगवान् तो धर्म के लिये ही हलते चलते व्याख्यान देते हैं और साधु भी धर्म के लिए ही सब क्रिया करते हैं और केवली या साधु पूर्वोक्त क्रिया करते हैं उसमें हिंसा अवश्य होती है भले वे कहा जावेगा। क्या आप अपनी भांति उनको भी दक्षिण की नरक में नहीं भेज दें और अहित-अबोध का कारण तो न बतला दें ? सत्य है अज्ञानी लोग क्या अनर्थ नहीं करते हैं। क्या अब भी आप इन दोनों सूत्रों के पाठों को अनार्य मिथ्या-दृष्टि क्रूरकर्मी और निध्वंस परिणामी के लिए मान लेंगे। प्र०-उपासक दशांग सत्र में आनन्द कामदेव के व्रतों का अधिकार है पर मूर्ति का पूजन कहीं भी नहीं लिखा है ? ___उ०—लिखा तो है परन्तु आपको दीनता नहीं। अानन्द ने भगवान् वीर के सामने प्रतिज्ञा * की है कि आज पीछे मैं अन्य तीर्थों और उनकी प्रतिमा तथा जिनप्रतिमा को अन्यतीर्थी ग्रहण कर अपना देव मान लिया हो तो उप प्रतिमा को भी मैं नमस्कार नहीं करूँगा। इससे सिद्ध है कि आनन्दादि श्रावकों ने - देखो मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास-प्रकरण तीसरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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