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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर के कारण अहित-अबोध का कारण बतलाया है नहीं तो आनन्द कामदेव गृह कार्य में प्रारम्भ करते हुए भी एकावतारी हुए हैं। समझे न ?
प्र०-प्रश्न व्याकरण सूत्र में जीव हिंमा करने वालों को मन्दबुद्धिया और दक्षिण नरक में जाने वाला बतलाया है ? ____उ०- जब आपके साधु श्रावक की तो नरक के सिवाय गति ही नहीं है । क्योकि आपके प्रत्येक कार्य में जीवहिसा तो होती ही है, चाहे त्रस जीवों की हो, चाहे स्थावर जीवों की; जहाँ चलनादि क्रियाएँ होती हैं वहाँ जीव हिंसा अवश्य हुआ करती है। भगवती सूत्र में श्रावक को तीन क्रिया-- आरम्भ, परिग्रह,
और माया तथा साधु को दो क्रिया आरम्भ और माया की बताई है। आपके मताऽनुसार प्रारम्भ करने वाला दक्षिण की नरक में जाना चाहिये । बलिहारी है आपके ज्ञान की १ मित्रों! किसी विद्वान् से सत्रों के अर्थ-रहस्य को समझो । फिर प्रश्न करो। वास्तव में प्रश्न व्याकरण सूत्र में श्राश्रव द्वार का वर्णन है । क्रूरकर्मी, निध्वंस परिणामी, मिथ्यादृष्टि अनार्य लोग, एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक प्राणियों की हिंसा कर घर, हाट, देवल, छत्री, चूल्हा, चक्की, ऊखल, मूशल आदि बनाते हैं, वह अपने अशुभ पारणामों से दक्षिण के नरक में जाते हैं। यदि यह पाठ अनार्य मिथ्यादृष्टि के लिए न हो तो श्रानन्द कामदेव जैसे श्रावकों के भी घर हाटादि कार्यों में हिंसा होती थी, अतः उन्हें भी दक्षिण नरक में जाना चाहिये था पर नहीं, वे स्वर्ग में गये और अब एक भव कर मोक्ष में जायेंगे। यदि आपकी भावना है कि आरंभ करने वाला दक्षिण की नरक में ही जाता है तो आप भले ही
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