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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर २८० हरेक व्यक्ति हरेक टाइम में घड़ी रख, कपड़ा खोल कर बैठ जावे, धूल पड़ती जाय और सामायिक आती जाय, पर उसको पूछा जाय कि सामायिक क्या वस्तु है ? जैसे किसी अनधिकारी को अधिकार पद दे देने से उस पद का महत्व मिट्टी में मिल जाता है इसी भांति आज अज्ञ लोगों ने सामायिक का महात्म्य कम कर दिया है। हमारे कथन का यह अर्थ नहीं है कि सामायिक करना बुरा है ? सामायिक अवश्य करनी चाहिये पर पहले सामायिक के भावार्थ को समझना चाहिये कि सामायिक का क्या अर्थ है, कितनी योग्यता वाला सामायिक करने का अधि. कारी है, उनका आचरण कैप्सा होना चाहिये । ज्ञान शून्य दिनभर सामायिकें करने की बजाय ज्ञान संयुक्त एक सामायिक करना हो महान् लाभ का कारण हो सकता है। समझे न___ प्र.-"श्री आचाराङ्ग सूत्र में लिखा है कि-छः काया के जीवों की हिंसा करने वालों को भवाऽन्तर में अहित और अबोध का कारण होता है ?" उ०-आपने इस पाठ और अर्थ को ठीक नहीं देखा है, यहाँ तो खास मिथ्यात्वियों के लिये कहा है। यदि आप अपने पर लें तो आपका ऐसा कोई श्रावक या साधु नहीं है, कि छः काया की हिंसा से बच सका हो । क्योंकि गृहस्थ लोग घर, हाट कराने में छः काया की हिंसा करते हैं। साधु के आहार-विहारादि की क्रिया में वायु-काय की हिंसा अवश्य होती है । आपके मताऽनुसार तो उनको भी अहित और अबोध (मिथ्यात्व ) का कारण होता ही होगा, परन्तु वस्तुतः ऐसा नहीं है। यह उल्लेख मिथ्या दृष्टियों की अपेक्षा है, उनकी मिथ्या श्रद्धा और अशुभ परिणाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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